भाजपा ने बीते दो दिनों के अंदर ही 2 बड़े फैसले लिए हैं, जिन पर लंबे समय से इंतजार चल रहा था। एक तरफ केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी को यूपी भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है तो वहीं बिहार के मिनिस्टर नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। दोनों ही फैसले चौंकाने वाले हैं, लेकिन नितिन नबीन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना सबसे अहम फैसला है। वह महज 45 साल के हैं और बिहार के पहले नेता हैं, जिन्हें भाजपा ने राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर मौका दिया है। कायस्थ समाज से आने वाले नितिन नबीन को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह का करीबी माना जाता है।
बीते करीब डेढ़ सालों से राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर भाजपा और संघ नेतृत्व में रस्साकशी चल रही थी। ऐसे में अचानक से नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के फैसले ने सभी को चौंका दिया। उनका नाम दूर-दूर तक चर्चा में भी नहीं था। धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर समेत कई नामों की चर्चा थी, लेकिन अंत में नितिन नबीन के नाम पर ही मुहर क्यों लगी। कहा जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में नितिन नबीन को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। भाजपा में अंदरखाने और बाहर भी इसे लेकर चर्चा है कि आखिर नितिन नबीन पर आरएसएस कैसे सहमत हुआ। भाजपा और संघ दोनों ही कैसे इस मामले में एकमत हो गए।
भाजपा के एक नेता ने इस संबंध में बात करने पर कहा कि नितिन नबीन का संघ परिवार से पुराना नाता है। उनके पिता बिहार भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। परिवार विचारधारा के प्रति दो पीढ़ियों से समर्पित रहा है। यही वजह रही कि पीएम मोदी और अमित शाह ने जब उनका नाम आगे बढ़ाया तो आरएसएस भी उस पर सहमत हो गया। संघ परिवार की ओर से लगातार इस बात पर जोर था कि वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध नेता को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा पद मिले। इसके अलावा नई पीढ़ी के किसी नेता को मौका दिया जाए।
बिहार से नितिन नबीन को अध्यक्ष पद देकर भाजपा ने हिंदी पट्टी में अपनी पैठ बनाए रखने की भी कोशिश की है। मौजूदा परिदृश्य में बिहार, यूपी, राजस्थान, एमपी जैसे हिंदी राज्य उसके लिए पावरहाउस बन चुके हैं। इसलिए यहीं से अध्यक्ष देना भाजपा के लिए मुफीद फैसला है। फिर नितिन नबीन साफ छवि के और बिना किसी विवाद में पड़े काम करने वाले नेता माने जाते हैं। उनकी उनकी इसी सादगी और चुपचाप काम में लगे रहने की छवि का फायदा मिला है।





