छत्तीसगढ़ ब्यूरो रिपोर्ट। देश में दशकों से सक्रिय नक्सली आंदोलन से जुड़ा बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने अपने हालिया बयानों और प्रेस विज्ञप्तियों के ज़रिये स्पष्ट किया है कि संगठन अब हथियारबंद संघर्ष को अस्थायी रूप से विराम देकर सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए तैयार है। पार्टी ने सरकार से आग्रह किया है कि वार्ता की प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए उन्हें कम से कम एक माह का समय दिया जाए और जेलों में बंद कैदरों व नेताओं से संवाद की अनुमति दी जाए।वार्ता की पहल, लेकिन कार्रवाई तेजमाओवादियों ने कहा है कि वे वार्ता की दिशा में ईमानदारी से कदम बढ़ा रहे हैं। बावजूद इसके सरकार की ओर से गिरफ्तारी और कार्रवाई तेज़ कर दी गई है। संगठन ने आरोप लगाया है कि शांति वार्ता की पहल को तोड़ने के लिए हजारों कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है और आंदोलनकारी नेताओं पर शिकंजा कसा गया है। मई 2025 में हुई एक बड़ी कार्रवाई में संगठन के महासचिव समेत 28 वरिष्ठ माओवादी नेताओं को गिरफ्तार किया गया था।
माओवादी संगठन ने सरकार के सामने रखी तीन प्रमुख मांगें
जेलों में बंद कैदियों से संवाद की अनुमति दी जाए। पार्टी को अपनी रणनीति तय करने और साथी संगठनों से राय-मशविरा करने के लिए कम से कम एक माह का समय दिया जाए। शांति प्रक्रिया के दौरान गिरफ्तारियां और दमनात्मक कारवाइयां बंद की की जाएं।अपील की है कि वे शांति वार्ता के इस प्रयास का समर्थन करें। उनका कहना है कि अगर जनता और लोकतांत्रिक ताकतें आगे आएंगी तो वार्ता की प्रक्रिया मज़बूत होगी और जंगलों में फैली हिंसा को खत्म करने का रास्ता खुलेगा।
सरकार पर आरोप
प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि संगठन ने हथियार छोड़कर वार्ता की पेशकश की है, लेकिन सरकार की लगातार सख्ती, हिरासत और मुठभेड़ों से यह संकेत मिलता है कि वह प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाना चाहती। माओवादियों का आरोप है कि यह रवैया शांति की बजाय अविश्वास को बढ़ावा देगा।
बदलती रणनीति
माओवादी नेताओं का कहना है कि अब पार्टी जनता की समस्याओं के समाधान के लिए व्यापक जन संघर्षों में भागीदारी करेगी। दलित, आदिवासी, महिला, किसान, मजदूर, धार्मिक अल्पसंख्यक और बुद्धिजीवी तबकों को शांति प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया गया है।बस्तर से लेकर देशभर के नक्सल प्रभावित इलाकों में यह बयान एक बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है। पहली बार माओवादी संगठन ने साफ तौर पर हथियार छोड़कर शांति वार्ता की पेशकश की है। अब निगाहें सरकार के रुख पर हैं कि वह इस पहल को अवसर मानती है या कार्रवाई के पुराने ढर्रे पर ही कायम रहती है।