CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “मैंने A से Z (अर्नब गोस्वामी से जुबैर तक) को जमानत दी है, यही मेरी फिलॉसफी है; जमानत नियम है और जेल अपवाद है, इस सिद्धांत का मुख्य रूप से पालन किया जाना चाहिए.” साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ हमेशा सरकार से स्वतंत्रता नहीं होता, लेकिन कुछ प्रेशर ग्रुप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करके अदालतों पर दबाव डालकर अपने पक्ष में फैसला सुनाने की कोशिश कर रहे हैं. न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मामले में, अदालतों पर दबाव डालना भी शामिल है.
सीजेआई ने कहा कि हमारा समाज बदल गया है, खासकर सोशल मीडिया के आने से इंटरेस्ट ग्रुप और प्रेशर ग्रुप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करके अदालतों पर अपने पक्ष में फैसला लेने का दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं. यदि जज ऐसा नहीं करते हैं तो न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है, इसी बात पर मेरी आपत्ति है. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि कानून और संविधान उन्हें क्या करना चाहिए.
चंद्रचूड़ ने कहा कि जब मैंने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया और चुनावी बॉन्ड को रद्द कर दिया, तो मैं बहुत स्वतंत्र होता हूँ, लेकिन अगर सरकार के पक्ष में फैसला आता है, तो मैं स्वतंत्र नहीं हूँ. न्यायाधीशों को मामलों पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए.
कार्यक्रम में सीजेआई से दिल्ली दंगों मामले में जेल में बंद जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई में देरी को लेकर सवाल किया गया. सीजेआई ने जवाब में कहा कि मीडिया में दिखाए जाने वाले मामले का गुण-दोष काफी अलग हो सकता है, उन्होंने कहा कि मीडिया अक्सर कुछ विशिष्ट पहलू या परिस्थितियों को दिखाता है. जैसा कि CJI ने कहा, “एक जज किसी मामले की सुनवाई करते समय अपने दिमाग का इस्तेमाल करता है और बिना किसी पक्षपात के उसके गुण-दोष के आधार पर फैसला करता है.” मीडिया में एक विशेष मामला महत्वपूर्ण होता है और फिर अदालत की आलोचना की जाती है. जमानत के मामले मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण थे.