नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को निठारी हत्याकांड के एक मामले में सुरेन्द्र कोली की दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली उसकी सुधारात्मक याचिका को स्वीकार करते हुए उसे बरी कर दिया, जिससे उसकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया है।
कोली निठारी हत्याकांड के अन्य मामलों में पहले ही बरी हो चुका है।
निठारी हत्याकांड का खुलासा 29 दिसंबर 2006 को नोएडा के निठारी में व्यवसायी मोंिनदर ंिसह पंढेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिलने के बाद हुआ था। कोली उस समय पंढेर की कोठी में घरेलू सहायक के तौर पर काम कर रहा था।
यह आदेश भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने पारित किया, जिन्होंने कोली की याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की थी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने आदेश सुनाते हुए कहा, ‘‘उपर्युक्त कारणों से सुधारात्मक याचिका स्वीकार की जाती है।’’ शीर्ष अदालत ने मामले में कोली को बरी कर दिया तथा उसे पहले सुनायी गयी सजा और जुर्माना रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, ‘‘यदि किसी अन्य मामले या कार्यवाही में याचिकाकर्ता की आवश्यकता न हो तो उसे तत्काल रिहा कर दिया जाएगा।’’
कोली को नोएडा के निठारी गांव में 15 वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और फरवरी 2011 में उच्चतम न्यायालय ने उसकी सजा को बरकरार रखा था। उसकी पुर्निवचार याचिका 2014 में खारिज कर दी गयी थी। हालांकि, जनवरी 2015 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसकी दया याचिका पर निर्णय में अत्यधिक देरी के कारण मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2023 में कोली और सह-अभियुक्त पंढेर को निठारी से जुड़े कई अन्य मामलों में बरी कर दिया था और 2017 में निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को पलट दिया। अदालत ने कोली को 12 मामलों और पंढेर को दो मामलों में बरी कर दिया था। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और पीड़ित परिवारों ने बरी किए जाने के इन फैसलों को बाद में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी लेकिन शीर्ष अदालत ने इस साल 30 जुलाई को सभी 14 अपीलों को खारिज कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने सात अक्टूबर को कोली की सुधारात्मक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और कहा था कि उसकी याचिका ‘‘स्वीकार किये जाने योग्य है।‘‘ पीठ ने कहा था कि मामले में दोषसिद्धि मुख्यत? एक बयान और रसोई के चाकू की बरामदगी पर आधारित थी, जिससे साक्ष्य की पर्याप्तता पर सवाल उठते हैं। सीबीआई ने मामले को अपने हाथ में ले लिया था और उसकी तलाशी के परिणामस्वरूप और अधिक मानव अवशेष बरामद हुए थे।










