नई दिल्ली. राजधानी दिल्ली में कुछ ही महीने पहले यमुना नदी ने रौद्र रूप दिखाया था, जिसके कारण नदी किनारे बने कई जगह पानी में डूब गए थे। अब लगता है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) उन सबक को भुलाकर एक बार फिर करोड़ों रुपये खर्च करने की तैयारी में है। एक्सपर्ट्स की तमाम चेतावनियों के बावजूद, DDA ने शुक्रवार को घोषणा की है कि वह यमुना किनारे के अपने दो प्रमुख घाटों – असिता (Asita) और वासुदेव (Vasudev) घाट पर मरम्मत और रखरखाव का काम फिर से शुरू करने जा रहा है।
6 सितंबर तक हुई भारी और तीव्र बारिश के कारण यमुना अपने खतरे के निशान से ऊपर बहने लगी थी। इसके चलते DDA की महत्वाकांक्षी रिवरफ्रंट विकास परियोजनाओं, जिसमें लैंडस्केप पार्क, साइकिल ट्रैक और घाट शामिल थे, का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूब गया था।
दिलचस्प बात यह है कि विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोई सामान्य ‘बाढ़’ नहीं थी, बल्कि बाढ़ क्षेत्र (Floodplains) पर अतिक्रमण के कारण हुआ ‘नदी का बैकफ्लो’ था। यानी, हमने नदी की जगह छीन ली, इसलिए पानी वापस लौट आया।
नदी के उफनते पानी ने न केवल हाल ही में हुए पत्थर और ईंटों के काम को नष्ट किया, बल्कि लगाए गए पौधे उखड़ गए और सजावटी चीजें, जैसे कि साइनबोर्ड, छोटे स्कल्पचर और रास्ते भी बह गए। कई जगहों पर ईंटों की पक्की सड़कें धंस गईं और नई बिछाई गई घास गाद के नीचे दब गई। DDA अधिकारियों ने इन सार्वजनिक स्थानों को बहाल करने के लिए मरम्मत कार्य को जरूरी बताया है। वासुदेव घाट पर मरम्मत का अनुमानित खर्च 32.97 लाख रुपये और असिता घाट पर 46.7 लाख रुपये लगाया गया है।
DDA के एक अधिकारी के अनुसार, अगले दो महीनों में ठेकेदार को काम पर लगाया जाएगा, जिसमें गाद हटाना, ईंटों का काम फिर से करना, इंटरलॉकिंग टाइल्स लगाना और साइनबोर्ड लगाना शामिल होगा।
अर्बन प्लानिंग (शहरी नियोजन) विशेषज्ञों ने DDA की इस पहल पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने चेताया है कि बाढ़ क्षेत्र पर बार-बार ईंटों और कंक्रीट की संरचनाएं बनाना हर साल नुकसान और मरम्मत के एक दुष्चक्र को जन्म देगाय़
पीपल्स रिसोर्स सेंटर (PRC) के संस्थापक सदस्य, रविंद्र रवि ने कड़े शब्दों में कहा कि नदी को फैलने और ‘सांस लेने’ के लिए जगह चाहिए। उन्होंने साफ किया कि दिल्ली में जो हुआ वह सचमुच बाढ़ नहीं थी, बल्कि बाढ़ क्षेत्र पर अतिक्रमण के कारण पानी का बैकफ्लो था।
रवि ने समझाया, ‘वासुदेव घाट पर पानी दक्षिण की बजाय उत्तर की ओर जा रहा है क्योंकि बाढ़ क्षेत्र को कंक्रीट से पक्का कर दिया गया है। यमुना की गहराई ज्यादा नहीं है, इसलिए बहाव बढ़ने पर यह किनारों की ओर फैलेगी। लेकिन किनारों पर कंक्रीट के पार्क और सीढ़ियाँ हैं, जो हर बार डूबेंगे।’
पर्यावरण कार्यकर्ता दीवान सिंह ने जोर देकर कहा कि इस घटना को एक सबक के तौर पर लेना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि रिवरफ्रंट पार्कों को यमुना के प्राकृतिक चक्र को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘बाढ़ क्षेत्र प्रकृति द्वारा अतिरिक्त पानी को सोखने के लिए बनाए गए हैं। ऐसे पौधे लगाना जो पानी में डूबने से नष्ट हो जाते हैं, व्यर्थ है। हमें रिवराइन ग्रास (riverine grasses) जैसी अधिक बाढ़-प्रतिरोधी प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए जो जल्दी से फिर से उग सकें। अगर इसे समझदारी से डिजाइन किया जाए, तो ये पार्क बाढ़ के साथ भी बने रह सकते हैं।’